Share This :

Kabir Ke Dohe, कबीर दास जी 15वीं सदी के भारतीय कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। कबीर दास जी सभी धर्मो को मानते थे उन्होंने अपने दोहो के माध्यम से हिंदी जगत में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है ।

अगर आप उन दोहो को पढ़ेंगे तो आप अपने जीवन में बहुत अच्छे बदलाव कर सकते है , उनके दोहे जो की हमारे आपके जीवन पर ही आधारित है ।

कबीर जी ये दोहे आपके जीवन को positive तरीके से जीने में help करेंगे, आपको motivate और inspire करेंगे । हिंदी कवि कबीर दास जी के दोहे हमे जीवन की सच्चाई से रूबरू करवाते है । कबीर जी के ये दोहे आपके जीवन को बदल देंगे , इन दोहो को पढ़कर आपके जीवन में एक नयी ऊर्जा (energy ) का संचार होगा।

दोहो को इतने अच्छे से बनाया गया है, “जैसे काल करे सो आज करे”, मतलब हम कैसे अपने काम को सही समय पर ख़तम करे और अपने उद्देश्य को प्राप्त करे , हम सबको कबीर जी के दोहो पढ़कर जीवन को सही दिशा देनी चाहिए ।

दोहो के माध्यम से ऐसी ऐसे बातें बतलाने का प्रयास किया है , अगर आप उन बातों को अपनाएंगे तो निश्चित रूप से आपका जीवन सुखमय होगा , आप ईश्वर से अपने आप को कनेक्ट कर पाएंगे ।

आइए दोहो को पढ़ने का आनंद उठाये। नीचे कबीर जी के famous दोहे दिए गए है जिन्हे पढ़कर आप आत्मा की संतुस्टी प्राप्त करेंगे ।

कबीर के दोहे Kabir Ke Dohe

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय । जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।

ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये । औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।

माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे । एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।

बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर । पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान । शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।

जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप । जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ।

जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान । मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान ।

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए । यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए ।

जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही । सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय । ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।

राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय । जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ।

साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये । मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ।

ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय । सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ।

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय । हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।

लूट सके तो लूट ले, हरी नाम की लुट । अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेगे छुट ।

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप, अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ।

Share This :